Raviwar Vrat | Sunday Fasting
Sunday is dedicated to Lord Surya (Sun God). Surya Puja is a divine boon for those who face problems, hurdles, and misfortune in their lives, and for that people keep Raviwar Vrat.
Worship of the Sun is beneficial when people get stuck, no matter how hardworking, honest, and intelligent they are good luck seems to ignore them. People who aspire to have sound health, prosperity, good eyesight, strength and courage, success, cure of chronic diseases like leprosy, heart ailment, nervous weakness, asthma, etc. should worship the Sun.
This planet is known for its power, strength, and glory. An ill-placed Sun could also lead to difficulties in health, relating to heart or blood pressure/ blood circulation.
In such a case, it is advisable to recite Surya Japa or Dhyan Mantra. After planning to perform the Surya Puja, one should wear clean red clothes on Sunday and offer a lotus flower to God, facing the east direction.
People keep fast on Sundays in the name of Surya Narain or the Sun God. They take food only once a day, generally fruit, before sunset. Saltish and fried items are avoided.
It is believed that a fast on a Sunday saves one from skin diseases like leprosy, ringworm, and eyesores. Sun God is worshipped with red sandalwood and red flowers.
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Raviwar Vrat Katha in English
Once there was an old lady. She would get up early in the morning and take her bath. She kept her house dean by plastering it with cow dung and took her meals only after offering food to the Sun God. She lived a happy life. This lady used to collect cow dung from her neighbor’s house.
The neighbors’ wife was jealous of her. She tethered her cow inside the room so that the old lady could not collect the dung. And as she could not plaster her house with cow-dung, she did not cook her food. She did not even offer food to the idols. She remained on fast throughout the day and slept with an empty stomach.
The Sun God appeared before her in her dream. He told, Why did not you take your meals? Why did you not offer food to the Idols? The old lady said politely, My neighbor’s lady did not allow me to collect cow-dung from her house. I could not clean my house. I have no cow of my own.
The Sun God said I am happy with you because you kept fast on Sunday. I am pleased with your worship. I shall give you a beautiful The god disappeared. The old lady opened her eyes. A beautiful cow with a calf was there in her courtyard. She was surprised to see them. She arranged hay and water for them.
When the neighbor’s lady saw the cow in the old lady’s house, she became jealous of her. She also noticed that the cow’s dung was of gold and not ordinary dung. She took the gold dung and replaced it with the ordinary dung of her cow. She continued the replacing practice for a number of days.
The Sun God noted that the old lady was being cheated by her neighbor. He caused a storm at sunset. The old lady tethered her cow inside her room for its safety. She was, however, surprised to see that her cow gave her gold dung instead of an ordinary one. She could see through her neighbors trick.
The neighbor’s lady was constantly jealous. She thought of a plan to deprive her of the wonder cow. She went to the king and said, My Lord, a poor old lady in our neighborhood has a divine cow. The cow gives gold dung. It would be befitting for your graciousness if this cow Is with you. She keeps it inside her room. No one can have even a glimpse. The king was a greedy person. He told his courtier, Go immediately and bring the cow.
The old lady was about to offer food to the Sun Gods’ idol when the courtier reached her house. He untied the rope from the peg and took away the cow. The lady prayed and wept, but all in vain. The old lady missed her meals that day. She prayed to God for the safe return of the cow. She could not sleep at night.
The king, on the other hand, was highly pleased to have that divine cow. That night, he had a dream. The Sun God was there who said, I offered this cow to the old lady as a token of my affection for her worship of me. You do not deserve this cow.
The king woke up. He was badly shaken. He saw that the entire palace was full of cow dung. There was a bad smell all around. In the morning, the king sent for the old lady with due honor. He returned the cow to the old lady and also gave her some wealth. The neighbor’s lady was suitably punished which was a cause of relief to all.
The king proclaimed an order that all his subjects should observe fast on Sundays if they wanted their desires to be fulfilled. Now, all his people were prosperous. Illness never visited them. They never faced any natural calamity. Everyone enjoyed happiness.
Raviwar Vrat Katha in Hindi
प्राचीन काल में किसी नगर में एक बुढ़िया रहती थी। वह प्रत्येक रविवार को सुबह उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर आंगन को गोबर से लीपकर स्वच्छ करती थी। उसके बाद सूर्य भगवान की पूजा करने के बाद भोजन तैयार कर भगवान को भोग लगाकर ही स्वयं भोजन करती थी। भगवान सूर्यदेव की कृपा से उसे किसी प्रकार की चिन्ता व कष्ट नहीं था। धीरे-धीरे उसका घर धन-धान्य से भर रहा था।उस बुढ़िया को सुखी होते देख उसकी पड़ोसन उससे बुरी तरह जलने लगी। बुढ़िया ने कोई गाय नहीं पाल रखी थी।
अतः रविवार के दिन घर लीपने केलिए वह अपनी पड़ोसन के आंगन में बंधी गाय का गोबर लाती थी। पड़ोसन ने कुछ सोचकर अपनी गाय को घर के भीतर बांध दिया। रविवार को गोबर न मिलने से बुढ़िया अपना आंगन नहीं लीप सकी। आंगन न लीप पाने के कारण उस बुढ़िया ने सूर्य भगवान को भोग नहीं लगाया और उस दिन स्वयं भी भोजन नहीं किया। सूर्यास्त होने पर बुढ़िया भूखी-प्यासी सो गई। इस प्रकार उसने निराहर व्रत किया।
रात्रि में सूर्य भगवान ने उसे स्वप्न में दर्शन दिए और व्रत न करने तथा उन्हें भोग न लगाने का कारण पूछा। बुढ़िया ने बहुत ही करुण स्वर में पड़ोसन के द्वारा घर के अन्दर गाय बांधने और गोबर न मिल पाने की बात कही। सूर्य भगवान ने अपनी भक्त की परेशानी का कारण जानकर उसके सब दुःख दूर करते हुए कहा- हे माता, हम तुमको एक ऐसी गाय देते हैं जो सभी इच्छाएं पूर्ण करती है। क्यूंकि तुम हमेशा रविवार को पूरा घर गाय के गोबर से लीपकर भोजन बनाकर मेरा भोग लगाकर ही स्वयं भोजन करती हो, इससे मैं बहुत प्रसन्न हूं। मेरा व्रत करने व कथा सुनने से निर्धन को धन और बांझ स्त्रियों को पुत्र की प्राप्ति होती है। स्वप्न में उस बुढ़िया को ऐसा वरदान देकर भगवान सूर्य अंतर्ध्यान हो गए।
प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व उस बुढ़िया की आंख खुली तो वह अपने घर के आंगन में सुन्दर गाय और बछड़े को देखकर हैरान हो गई। गाय को आंगन में बांधकर उसने जल्दी से उसे चारा लाकर खिलाया। पड़ोसन ने उस बुढ़िया के आंगन में बंधी सुन्दर गाय और बछड़े को देखा तो वह उससे और अधिक जलने लगी। तभी गाय ने सोने का गोबर किया। गोबर को देखते ही पड़ोसन की आंखें फट गईं। पड़ोसन ने उस बुढ़िया को आसपास न पाकर तुरन्त उस गोबर को उठाया और अपने घर ले गई तथा अपनी गाय का गोबर वहां रख आई। सोने के गोबर से पड़ोसन कुछ ही दिनों में धनवान हो गई। गाय प्रति दिन सूर्योदय से पूर्व सोने का गोबर किया करती थी और बुढ़िया के उठने के पहले पड़ोसन उस गोबर को उठाकर ले जाती थी।
बहुत दिनों तक बुढ़िया को सोने के गोबर के बारे में कुछ पता ही नहीं चला। बुढ़िया पहले की तरह हर रविवार को भगवान सूर्यदेव का व्रत करती रही और कथा सुनती रही। लेकिन सूर्य भगवान को जब पड़ोसन की चालाकी का पता चला तो उन्होंने तेज आंधी चलाई। आंधी का प्रकोप देखकर बुढ़िया ने गाय को घर के भीतर बांध दिया। सुबह उठकर बुढ़िया ने सोने का गोबर देखा उसे बहुत आश्चर्य हुआ। उस दिन के बाद बुढ़िया गाय को घर के भीतर बांधने लगी। सोने के गोबर से बुढ़िया कुछ ही दिन में बहुत धनी हो गई। उस बुढ़िया के धनी होने से पड़ोसन बुरी तरह जल-भुनकर राख हो गई। जब उसे सोने का गोबर पाने का कोई रास्ता नहीं सूझा तो वह राजा के दरबार में पहुंची और राजा को सारी बात बताई।
राजा को जब बुढ़िया के पास सोने के गोबर देने वाली गाय के बारे में पता चला तो उसने अपने सैनिक भेजकर बुढ़िया की गाय लाने का आदेश दिया। सैनिक उस बुढ़िया के घर पहुंचे। उस समय बुढ़िया सूर्य भगवान को भोग लगाकर स्वयं भोजन ग्रहण करने वाली थी। राजा के सैनिकों ने गाय खोला और अपने साथ महल की ओर ले चले। बुढ़िया ने सैनिकों से गाय को न ले जाने की प्रार्थना की, बहुत रोई-चिल्लाई लेकिन राजा के सैनिक नहीं माने। गाय के चले जाने से बुढ़िया को बहुत दुःख हुआ।
उस दिन उसने कुछ नहीं खाया और सारी रात सूर्य भगवान से गाय को पुन: प्राप्त करने हेतु प्रार्थना करने लगी। दूसरी ओर राजा गाय को देखकर राजा बहुत खुश हुआ। लेकिन अगले दिन सुबह जैसे ही वह उठा सारा महल गोबर से भरा देखकर घबरा गया। उसी रात भगवान सूर्य उसके सपने में आए और बोले- हे राजन। यह गाय वृद्धा को लौटाने में ही तुम्हारा भला है। रविवार के व्रत से प्रसन्न होकर ही उसे यह गाय मैंने दी है।
सुबह होते ही राजा ने वृद्धा को महल में बुलाकर बहुत-से धन के साथ सम्मान सहित गाय लौटा दी और क्षमा मांगी। इसके बाद राजा ने पड़ोसन को दण्ड दिया। इतना करने के बाद राजा के महल से गंदगी दूर हो गई। उसी दिन राज्य में घोषणा कराई कि सभी स्त्री-पुरुष रविवार का व्रत किया करें। रविवार का व्रत करने से सभी लोगों के घर धन-धान्य से भर गए। चारों ओर खुशहाली छा गई। सभी लोगों के शारीरिक कष्ट दूर हो गए।